बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
सोलह
वानर स्कंधावार में शोक के साथ-साथ हताशा के लक्षण भी अत्यंत स्पष्ट थे। स्कंधावार की चौकसी और अधिक सावधानी से हो रही थी; किंतु उनमें आत्मविश्वास के स्थान पर भय का भाव ही अधिक स्पष्ट था। सुग्रीव के शिविर के मध्य में भूमि पर राम और लक्ष्मण के क्षत-विक्षत शरीर अचेत पड़े थे। इतना तो स्पष्ट ही था कि वे अभी जीवित थे; किंतु उनके शरीर के घावों तथा उनकी सघन मूर्च्छा को देखते हुए उनके पुनर्जीवित हो उठने में संदेह होने लगता था। अगस्त्य आश्रम से आए हुए वानर सेना के शल्य चिकित्सकों ने उन दोनों के शरीर में से बाण निकाल कर, औषध लगा, पट्टी कर दी थी; किंतु उनकी संज्ञा लौटाने के विषय में न कुछ कह पा रहे थे...।
सारे यूथपति चिंतित थे; किंतु सुग्रीव की व्याकुलता उन्हें असंतुलित करती जा रही थी, युद्ध के पहले ही दिन इतनी बड़ी क्षति हो जाएगी, यह कौन जानता था! वर्तमान वानर-सेना राम की ही बनाई हुई थी। उन्हीं के द्वारा प्रशिक्षित और उन्हीं के द्वारा शस्त्र-बद्ध की गई थी। उन्होंने ही इसे युद्ध-रीति सिखाई थी और उन्हीं की युद्ध-नीति चल रही थी। यदि राम और लक्ष्मण ही नहीं रहेंगे तो इस युद्ध का क्या होगा। पराजय तो होनी ही है : वानरों का चिर शत्रु रावण अपना कूर प्रतिशोध लेगा। यह सारी वानर-सेना घेर कर लंका में ही मार डाली जाएगी...किस सांसत में फंसा दिया राम ने वानरों को...।
किंतु दूसरे ही क्षण सुग्रीव का मन उन्हें धिक्कारने लगा...। राम का इसमें क्या दोष है? राम की पत्नी का हरण हुआ था। वे तो अपनी पत्नी को खोज रहे थे। सुग्रीव ने ही अपने स्वार्थवश उनसे मित्रता की। उनके शौर्य के बल से रुमा और किष्किंधा का राज्य प्राप्त किया। सुग्रीव ने ही उन्हें यह सारी सेना दी और साथ ही विश्वास दिलाया कि वानर राक्षसों से लड़ने में समर्थ हैं। आज जब युद्ध का अवसर आया तो राक्षसों को पराजित करना तो दूर, वानर-सेना राम लक्ष्मण की रक्षा तक करने में समर्थ नहीं हुई। असंख्य सैनिक और यूथपति, सेनापति, सेनानायक खड़े देखते रहे और मेघनाद राम और लक्ष्मण को क्षत-विक्षत कर चला गया...न दी होती सुग्रीव ने सेना, न दिलाया होता इतना भरोसा, तो क्या राम ऐसे ही रावण से लड़ने के लिए चल पड़ते? सारी सेना में एक भी अच्छा शल्य चिकित्सक नहीं, कोई वैध नहीं जो राम और लक्ष्मण के घावों पर औषध लगा, उनकी मूर्च्छा दूर कर सके; और सुग्रीव उन्हें रावण से लड़ने के लिए ले आए...। धिक्कार है सुग्रीव तुझ पर धिक्कार है...अपने महत्व को कोई इस प्रकार बढ़ा कर आंकता है और अपने मित्रों को इस प्रकार संकट में डालता है? मित्र के साथ सुग्रीव ने कैसा शत्रु का-सा व्यवहार किया...। उन्हें यहां लाकर मृत्यु के मुख में धकेल दिया.. अब वैदेही का उद्धार कैसे होगा?
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